उद्धव ठाकरे बन जाएंगे अब शोले के ठाकुर, जेल में गई जुबान, अब जाएगी कमान, शिवसेना को जय-वीरु की जरूरत

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उद्धव ठाकरे बन जाएंगे अब शोले के ठाकुर, जेल में गई जुबान, अब जाएगी कमान, शिवसेना को जय-वीरु की जरूरत"


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महाराष्ट्र की राजनीति में ब्लॉक बस्टर शोले की पिक्चर शुरू है. संजय राउत के अरेस्ट होने के बाद उद्धव ठाकरे का बायां हाथ अलग हो गया है. अब बीजेपी नेता किरीट सोमैया और निर्दलीय विधायक रवि राणा


की मानें तो अनिल परब के गिरफ्तार होने की भी संभावनाएं हैं. अगर ऐसा होता है तो उद्धव ठाकरे की हालत शोले के ठाकुर जैसी हो जाएगी. आगे बीएमसी का चुनाव है. ऐसे में शिवसेना के ठाकुर को अपना


अस्तित्व बचाने के लिए जय और वीरू की ज़रूरत है. संजय राउत उद्धव ठाकरे की ज़ुबान थे. वे जो बोलते थे, समझिए वो उद्धव ठाकरे बोल रहे होते थे. या इससे आगे जाकर समझिए तो उद्धव ठाकरे भी जो बोलते थे,


वो संजय राउत के ही शब्द हुआ करते थे. इसीलिए हाल में उद्धव ठाकरे का जो इंटरव्यू हुआ उसकी खिल्ली बीजपी ने यह कह कर उड़ाई कि सवाल भी उन्हीं का और जवाब भी उन्हीं का, यह इंटरव्यू है या तमाशा?


BMC का चुनाव करीब है, अनिल परब का नंबर भी आया तो? अब अगर दापोली रिसॉर्ट से जुड़े मामले हों या अन्य आर्थिक व्यवहार में गड़बड़ियों वाला मामला, अगर संजय राउत के बाद अनिल परब भी मुश्किल में आ


जाते हैं तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना का क्या होगा? फिर तो एकनाथ शिंदे के जाने बाद उद्धव के पास बचे हुए दोनों बाजू अलग हो जाएंगे? शिवसेना की मुंबई की केबल इंडस्ट्री में मजबूत पकड़ है. केबल का


धंधा अनिल परब चलाते हैं. बीएमसी से जुड़ी रणनीति वही बनाते हैं. शिवसेना से किसको कॉरपोरेटर के चुनाव के लिए टिकट देना है, किसको नहीं, इस मामले में उद्धव ठाकरे सबसे ज्यादा उन्हीं की सुनते हैं.


अनिल परब चले गए तो यह रणनीति फिर कौन बनाएगा? यानी संजय राउत के अरेस्ट होने के बाद अनिल परब भी चले गए तो ज़ुबान भी गई और कमान भी जाएगा. ठाकरे एंड कंपनी में उद्धव CEO बन कर रहे, शिंदे कंपनी ले


उड़े उद्धव ठाकरे के पार्टी प्रमुख बनने के बाद शिवसेना में उद्धव पार्टी के नेता बन कर कम सीईओ बन कर ज्यादा रहे. बीजेपी के नेताओं का कहना है कि वे पिछले ढाई साल में सिर्फ तीन घंटे के लिए


मंत्रालय गए, ऐसे में वे संगठन कैसे खड़ा कर पाएंगे? शिवसेना में कुछ लोगों के हाथ में कमान थी, वही पार्टी चला रहे थे. उनमें संजय राउत भी थे. संगठन तो शिंदे ले गए हैं. यह अलग बात है कि उद्धव


कैंप के लोग कहेंगे कि संगठन का मतलब सिर्फ विधायक और सांसद नहीं होते. हजारों-लाखों कार्यकर्ता होते हैं. पर इतना तो मानना ही होगा कि कार्यकर्ताओं को नेतृत्व देने वाला नेता ही होता है. शिंदे


क्या ले गए हैं, इस पर बहस लंबी है, पर यह तो तय है कि अब उद्धव ठाकरे की शिवसेना को नए तरीके से खड़ा करने के लिए यह देखना पड़ रहा है कि शिंदे क्या छोड़ गए हैं. मुंबई है आखिरी किला. अनिल परब


घिरे तो संकट हो जाएगा खड़ा एकनाथ शिंदे के पास जो था, जितना था, संगठन उन्हीं के हाथ था. ना सिर्फ ठाणे बल्कि महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में संगठन पर पकड़ रखने वाले एक वही थे. अब बचता है


मुंबई का आखिरी किला. यहां से अगर अनिल परब भी चले जाते हैं तो शिवसेना की पकड़ मुंबई से भी खत्म हो जाएगी. कोंकण कभी शिवसेना का गढ़ हुआ करता था. लेकिन नारायण राणे सालों पहले शिवसेना छोड़ चुके.


अब विनायक राउत अकेले कोंकण में शिवसेना को मजबूत रख पाएंगे, इसकी संभावना कम और संदेह ज्यादा है. इसीलिए मुंबई में शिवसेना के हाथ से सत्ता लेनी है तो अब अनिल परब को घेरने की तैयारी होगी. ठाणे


तो पहले ही एकनाथ शिंदे खाली कर चुके हैं. कौन हो सकते हैं अब ठाकुर के लिए जय-वीरू? अब उद्धव ठाकरे के तरकश में जो तीर बचे-खुचे हैं उनमें अनिल देसाई, मिलिंद नार्वेकर, अरविंद सावंत, सुभाष देसाई,


चंद्रकांत खैरे, विनायक राउत, सचिन अहिर जैसे लोग हैं. अनिल देसाई अनिल परब की जगह इसलिए नहीं ले सकते क्योंकि वे एक शिवसेना का सौम्य चेहरा हैं. शिवसेना की राजनीति चौक, चौराहे, गली-मोहल्लों की


राजनीति है. वे शिवसेना की कानूनी लड़ाई में इस वक्त बहुत काम आ सकते हैं लेकिन निचले तबकों से संवाद का स्किल उनमें नहीं है. मिलिंद नार्वेकर की बात करें तो आज से नहीं, शुरू से ही शिवसेना के एक


रणनीतिकार की हैसियत रखते हैं. लेकिन वे अकेले क्या कर लेंगे, यह बड़ा सवाल है. शिंदे की तरह संगठन में पकड़ रखने वाला उद्धव कैंप में कोई बचा ही नहीं अरविंद सावंत प्रवक्ता के तौर पर कुछ हद तक


संजय राउत का विकल्प हो सकते हैं, उससे ज्यादा नहीं. यही बात मनीषा कायंदे और प्रियंका चतुर्वेदी के साथ भी लागू होती है. ये सिर्फ पार्टी प्रवक्ता हो सकती हैं. राउत की तरह रणनीतिकार के तौर पर


इनका दर्जा नहीं है. सुभाष देसाई, चंद्रकांत खैरे, विनायक राउत आजमाए जा चुके लोग हैं. इनके भी कुछ लिमिटेशंस हैं. चंद्रकांत खैरे का प्रभाव औरंगाबाद तक सीमित है और विनायक राउत का कोंकण तक. राज्य


भर में थोड़ी बहुत पकड़ अगर किसी की थी तो वे एकनाथ शिंदे ही थे. आदित्य ठाकरे का जय बनना मुश्किल, संभव हुआ भी तो वीरू कहां है? अब ऐसे में अस्तित्व को बचाने की लड़ाई शुरू है. आदित्य ठाकरे जो


कर सकते हैं, वो कर रहे हैं. राज्य भर में निष्ठा यात्रा करते हुए वो शिवसेना की सीईओ ब्रांड राजनीति छोड़ कर शिवसंवाद कर रहे हैं. लेकिन उनका तजुर्बा अभी बहुत कम है. संभावनाएं अगर मानें कि अनंत


हैं तब भी गब्बर से लड़ाई में ठाकुर के पास वीरू कहां है. सचिन अहिर आदित्य ठाकरे को वर्ली की विधानसभा की सीट तो जितवा सकते हैं लेकिन सवाल पूरे महाराष्ट्र का नहीं भी है तो कम से कम मुंबई का गढ़


बचाने का है. ठाकुर इस वक्त पूरी तरह सोच में पड़े हैं, अकेले हैं. आज शिवसेना को नए जय-वीरू की ज़रूरत है, वरना गब्बर बीएमसी निकाल ले जाएगा. चलते-चलते गब्बर से याद आया… चलते-चलते गब्बर से याद


आया. जिस दिन उद्धव ठाकरे का इंटरव्यू जारी हुआ उस दिन बीजेपी नेता और पूर्व में वित्तमंत्री रहे सुधीर मुनगंटीवार ने TV9 से बात करते हुए दावा किया था कि बीएमसी का चुनाव उद्धव हार जाएंगे और अगर


ऐसा नहीं हुआ तो वे ऑन कैमरा माफी मांगेंगे. [embedded content]


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