नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में हिंसाविहीन चुनाव बड़ी उपलब्धि, नहीं आई पुनर्मतदान की नौबत
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निर्वाचन आयोग ने फुलप्रूफ प्लानिंग की और बिना किसी नक्सली हिंसा के विधानसभा और लोकसभा निपटाए। By RAHUL VAVIKAR Edited By: RAHUL VAVIKAR Publish Date: Mon, 13 May 2019 11:08:41 PM (IST)
Updated Date: Tue, 14 May 2019 08:17:49 AM (IST) रायपुर (राज्य ब्यूरो)। नक्सल प्रभावित राज्य में हिंसामुक्त चुनाव कराने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की दुनियाभर में प्रशंसा हो रही है। बस्तर
समेत प्रदेश का बड़ा हिस्सा नक्सल प्रभावित है। बस्तर में चुनाव कराना हमेशा बड़ी चुनौती रहा है। ईवीएम लूटने, मतदान दलों पर हमला करने, चुनाव के दौरान सुरक्षाबलों को निशाना बनाने की घटनाएं विगत कई
चुनावों में सर्खियां बटोरती रहीं। इस विषय पर बनी फिल्म न्यूटन ऑस्कर के लिए नामांकित हुई थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। निर्वाचन आयोग ने फुलप्रूफ प्लानिंग की और बिना किसी नक्सली हिंसा के चार
महीने पहले विधानसभा चुनाव निपटाया और अब लोकसभा का चुनाव। पहली बार बस्तर के किसी भी बूथ में पुनर्मतदान की नौबत नहीं आई। निर्वाचन आयोग की सफलता की कहानी दुनिया में चर्चित हुई तो मुख्य
निर्वाचन पदाधिकारी सुब्रत साहू को इस विषय में आख्यान देने के लिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने आमंत्रित किया। साहू बताते हैं कि नक्सल हिंसा न हो और लोग भयमुक्त होकर मतदान कर पाएं इसकी व्यापक
तैयारी की गई थी। करीब 35 हजार पेज का इलेक्शन मैनेजमेंट प्लान बनाया गया था। एक-एक मतदान केंद्र की पूरी जानकारी जुटाकर वहां क्या चुनौतियां हैं यह देखा गया फिर उसके मुताबिक समाधान तय किया गया।
जहां नक्सल सक्रिय हैं वहां सुरक्षा की कितनी जरूरत होगी। सुरक्षाबलों को किस तरह के हथियार और उपकरण की जरूरत होगी, अगर हमला हुआ तो मतदान दलों को क्या करना है आदि विषयों पर पहले से पूरी तैयारी
की गई और मतदान कर्मियों को भी तैयार किया गया। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की टीम ने पुलिस के साथ मिलकर सीक्रेट प्लान तैयार किया था। मतदान दलों को कब जाना है। किस रूट से जाना है। पैदल जाएंगे या
बाइक पर या हेलीकॉप्टर से आदि बातों की सूचना मतदानकर्मियों को भी अंतिम वक्त पर ही मिल पाई। मतदान कर्मियों को आखिरी समय में बताया गया कि उन्हें किस मतदान केंद्र में जाना है। मतदानदलों को
सुरक्षा की अलग से ट्रेनिंग दी गई। उन्हें नक्सली हमले और बारुदी सुरंग विस्फोट से बचाव के उपाय बताए गए। ड्रोन कैमरों से संवेदनशील मतदान केंद्रों पर निगरानी रखी गई। हेलीकॉप्टर से गए मतदान दलों
को समय पर बाहर भी निकाला गया। इन उपायों की वजह से ही नक्सल लाख कोशिशों के बावजूद इस बार चुनाव में कोई हिंसा नहीं कर पाए। मतदान के दौरान हिंसा का पुराना इतिहास बस्तर में मतदान के दौरान नक्सल
हिंसा का पुराना इतिहास रहा है। 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान नक्सल हिंसा में पांच लोग मारे गए थे जबकि छह घायल हुए थे। इसके चार महीने बाद 2014 के लोकसभा चुनाव के मतदान के दिन नक्सल हिंसा
में 27 मौतें हुई थीं और 21 घायल थे। 2003 के विधानसभा चुनाव में 11 मौतें हुई थीं और दो घायल थे। 2008 के विधानसभा चुनाव में 17 लोगों की जान गई थी जबकि सात घायल थे।
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