पर्यावरण दिवस विशेष: जल, जगंल, जमीन की हालत चिंताजनक

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पर्यावरण दिवस विशेष: जल, जगंल, जमीन की हालत चिंताजनक"


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साल दर साल करोड़ों पौधे लगे फिर भी वन क्षेत्र का प्रतिशत 1.63, खतरे के निशान से नीचे जा चुका है भूजल, छह क्रिटकिल ब्लॉक, माटी की सेहत भी हो रही है कमजोर, जीवांश कार्बन घटते जा रहे, माटी में


जीवांश कार्बन 0.75 प्रतिशत होने चाहिए, 0.35 ही बचा विश्व पर्यावरण दिवस पर करोड़ों पौधों का रोपण किया जाता है। मगर, क्या इसके बाद भी पर्यावरण में सुधार हो रहा है या नहीं, इस बात पर ध्यान नहीं


दिया जाता। दिन व दिन जल स्तर घटता जा रहा है। वायु में प्रदूषण की बढ़ोतरी हुई है। हरित क्षेत्र सिमटता जा रहा है। अंधाधुंध वनों का कटान चल रहा है। कई पेड़ तो विकास कार्यों की भेंट चढ़ चुके


हैं। ऐसे में किस तरह पर्यावरण को बचाया जा सकता है। इसके लिए सरकार को क्या उपाय करने चाहिए। लोगों की इसमें कितनी जिम्मेदारी होनी चाहिए। इन सभी मुद्दों को लेकर आपके अखबार हिन्दुस्तान ने बोले


अलीगढ़ अभियान के तहत सेहत पर ध्यान देने वाले लोगों से संवाद किया। शहर में विभिन्न पार्कों में लोग सुबह-सुबह व्यायाम करने पहुंचे हैं। गांधी पार्क में भी लोग व्यायाम करने में व्यस्त थे।


हिन्दुस्तान की टीम ने उनसे पर्यावरण को लेकर बात की तो लोगों ने बताया कि पर्यावरण बहुत दयनीय स्थिति में है। अलीगढ़ में चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा है। हरियाली तो लगाई जाती है मगर, उसका


रखरखाव नहीं किया जाता। साल दर साल वन विभाग की ओर से करोड़ों वन पौधे लगाए जाते हैं। इसके बाद भी वन क्षेत्र में कमी आई है। वर्ष 2021 में वन स्थिति की रिपोर्ट के मुताबिक अलीगढ़ में 1.83 प्रतिशत


वन क्षेत्र था, जो वर्ष 2024 में घटकर 1.63 प्रतिशत रह गया है। इस बार भी वन विभाग को 5 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य मिला है। पूरे जिले में 34 लाख पौधों का रोपण होना है। वन विभाग को ऊसर भूमि पर


पौध रोपण का लक्ष्य दिया गया है। इसमें कंजी, शीशम, नीम, खैर आदि के पौधे लगाए जाएंगे। गांधी पार्क में गंदगी से परेशानी सुबह व्यायाम करने आने वालों को सबसे ज्यादा गांधी पार्क में गंदगी से जूझना


पड़ता है। लोगों ने बताया कि रात में यहां पर असामाजिक तत्व अंदर आ जाते हैं। सुबह जब आते हैं तो प्लास्टिक के गिलास, शराब के पाउच पड़े मिलते हैं। पार्क में सैकड़ों लोग रोज आ रहे हैं, लेकिन


प्रशासन यहां की सफाई और सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे रहा है। साथ ही यहां पर हरियाली का रखरखाव नहीं है। पीने के पानी की व्यवस्था भी नहीं है। लोगों की मांग है कि पार्क की निगरानी की जाए। स्वास्थ्य


को लेकर लोगों का कहना था कि फास्ट फूड के चलते लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। इससे दूरी बनाकर रखनी चाहिए। इसका असर बच्चों पर ज्यादा है। साथ ही पानी के दोहन को कम कर प्रदूषण को कम कर


सकते हैं। कम हो रहा जीवांश कार्बन कृषि भूमि पर लगातार रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है। इन उर्वरकों से जीवांश कार्बन समेत 12 पोषक तत्व की कमी पाई गई है। इस कमी का


सीधा असर मिट्टी पर पड़ने वाला है। मिट्टी में जीवांश कार्बन 0.75 प्रतिश होना चाहिए जबकि वर्तमान में 0.35 ही बचा है। पौधों को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए 16 पोषक तत्वों मुख्य पोषक तत्व


-कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सूक्ष्म पोषक तत्व -कैल्सियम, मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, आयरन, कॉपर, बोरान, मैगनीज, मोलिबडनम, क्लोरीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी में


लगभग सभी पोषक तत्वों की कमी है। इसकों लेकर किसानों को प्राकृतिक खेती करने की सलाह दी जा रही है। पॉलीथिन न खत्म होने वाला प्रदूषण पर्यावरण विद् सुबोध नंदन शर्मा के मुताबिक इस दिवस को विश्व


पर्यावरण की परिभाषा के साथ मनाया जाए। वर्तमान में पॉलीथिन सबसे बड़ा प्रदूषण है। इसे न तो घटाया जा सकता है और न ही खत्म किया जा सकता है। इस पर चिंतन करना चाहिए। पॉलीथिन जहां से आ रही है, वहां


पर कार्रवाई होनी चाहिए। बदलते पर्यावरण से सब्जियों के स्वाद बदल रहे हैं। बारिश का हिसाब भी बिगड़ गया है। पेड़ लगाएं तो उसकी रक्षा भी स्वयं करें। पर्यावरण विद के मुताबिक वह अभियान चला रहे


हैं। जीवन को सुरक्षित करने के लिए स्वयं चेतन्य हों। जवाहर पार्क में सैंकड़ों लोग रोज व्यायाम करने आते हैं, मगर वह अपने वाहनों से आते हैं। पार्क के बाहर सैंकड़ों कार, बाइक की लाइन देखी जा


सकती है। खुद को फिट रखने के लिए आने वालों का इन प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों से आना कितना उचित है। हरि शंकरी वाटिका लगाई सदस्य गंगा समिति नमामि गंगे परियोजना ज्ञानेश शर्मा ने बताया कि पिछले


लगभग 20 वर्ष से गंगा किनारे स्वच्छता अभियान चलाकर व ग्राम पंचायत में जाकर नहर तालाबों के किनारे पौधरोपण कार्यक्रम चला रहे हैं। विभिन्न ग्राम पंचायतों गंगीरी, सलगावा, भमोरी, सिहवली, परोरा,


बरौली, हवीपुर, सिखरना कनोबी, गोशपुर, दतचोली, सिसई, हरनोट, भोजपुर समेत अन्य में हरि शंकरी वाटिका की स्थापना की गई है। इसमें पीपल, बरगद, पाकड़ के पौधे लगाए गए हैं। इसके अलावा सांकरा से गंगा


घाट तक करीब दो किमी. तक पेड़ नहीं है। यहां 200 पौधे लगाए जाएंगे। ट्री गार्ड बन चके हैं। एक जुलाई से वन महोत्सव शुरु होगा। दो माह अभियान चलाया जाएगा। अलीगढ़ में अब तक तीन हजार पौधे लगा चुके


हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर लोगों से अपील है कि मां पृथ्वी को बचाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को संकल्पित होना चाहिए। पौधरोपण अभियान में पूरी तरह से लगें। प्रत्येक व्यक्ति प्रतिवर्ष पांच पेड़


जरूर लगाए। प्लास्टिक से जितना संभव हो दूरी करें। प्लास्टिक की जगह हाथ के बने कपड़े के थैले का उपयोग करें। जल को बचाना भी बहुत जरूरी है। अगर जल ही नहीं रहेगा तो इस दुनिया में कुछ नहीं बचेगा।


जल तभी संभव है जब यह धरा पेड़-पौधों से हरी भरी रहेगी। आत्मदाह की ओर बढ़ती पृथ्वी आहुति संस्था के अध्यक्ष अशोक चौधरी ने बताया कि विश्व का बढ़ते तापमान के साथ भूकम्प भीषण बाढ़, दरकते पहाड़,


भयंकर तूफानों जैसी समस्याओं के लिए सीधे तौर पर मानव ही उत्तरदायी हैं। हमने सभी जीव, जंतु, पशु, पक्षियों, पेड़, पौधों, वनस्पतियों का जीवन खतरे में डाल दिया है। लगातार जंगलों का विनाश हो रहा


है। नदी, तालाबों, पोखरों को मार रहे हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। इसके साथ ही औद्योगिक विकास के चलते उत्सर्जित विषाक्त गैसें, प्रदूषित अपशिष्ट, कार्बन


उत्सर्जन, कृषि उत्पादन में रासायनिक खादों कीटनाशकों का प्रयोग, ढांचागत विकास के नाम पर पेड़ों का अंधाधुंध कटान, वाहनों वातानुकूलित यंत्रों, फ्रिज के कारण विषैली गैसों का उत्सर्जन, मांस


उत्पादन के लिए निरीह पशुओं का अत्यधिक कटान, अत्यधिक वर्षा के बाद भी जल संचयन के व्यापक ढांचे का अभाव ऐसे कई कारणों से पर्यावरण की समस्या बढ़ रही है।


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