फिल्म रिव्यू: सत्या 2
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रामगोपाल वर्मा पहले ही साफ कर चुके हैं कि उनकी फिल्म ‘सत्या 2’ का ‘सत्या’ (1998) से कोई लेना-देना नहीं है। फिल्म देख कर भी यही लगता है कि ‘सत्या 2’ का वाकई... रामगोपाल वर्मा पहले ही साफ कर
चुके हैं कि उनकी फिल्म ‘सत्या 2’ का ‘सत्या’ (1998) से कोई लेना-देना नहीं है। फिल्म देख कर भी यही लगता है कि ‘सत्या 2’ का वाकई ‘सत्या’ से कोई वास्ता नहीं है। तो फिर इसे ‘सत्या 2’ नाम देने की
क्या जरूरत थी? क्या रामू ‘सत्या’ की प्रसिद्धि को कैश कराना चाहते हैं या फिर उन्हें पहले से ही पता था कि अब अगर अंडरवर्ल्ड पर वो कोई और फिल्म बनाएंगे तो दर्शक नाम से ही भाग खड़े होंगे?
रामगोपाल वर्मा पिछले लंबे समय से एक अच्छी फिल्म के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दरअसल तमाम काबिलियत होते हुए भी वह कुछ खास चीजों के प्रति अपने जुनून से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। ‘सत्या 2’ में वो
तमाम चीजें दिखाई भी पड़ती हैं। ‘सत्या 2’ की कहानी एक सूत्रधार (मकरंद देशपांडे की आवाज के साथ) बुन रहा है, जो बताता है कि कैसे सत्या (पुनीत सिंह रत्न) मुंबई पहुंचा और उसने अपने दम पर एक नया
अंडरवर्ल्ड बनाया। सच जानिए जनाब, फिल्म की कहानी इतनी भर ही है। फिर भी जब दर्शक अपने रिस्क पर पैसे खर्च कर ही रहे हैं तो ये बताना फर्ज बनता है कि ‘सत्या 2’ की तह में क्या छिपा है। एक खास मिशन
के साथ सत्या मुंबई पहुंचा है, जहां उसके रहने-खाने का ठिकाना है उसके दोस्त नारा (अमिर्तियान) का घर। नारा फिल्म निर्देशक बनना चाहता है। उसकी एक दोस्त है स्पेशल (आराधना गुप्ता), जो दिल्ली से
मुंबई एक्ट्रेस बनने आई है। सत्या को एक बड़े बिल्डर लाहोटी (महेश ठाकुर) के यहां नौकरी मिल जाती है, जिसके ताल्लुक दुबई अंडरवर्ल्ड से हैं। एक बड़ी डील में सत्या आरके (राज प्रेमी) को अपनी तरफ कर
लाहोटी का दिल जीत लेता है। लाहोटी उसे रहने के लिए एक बड़ा घर और तमाम सुख-सुविधाएं मुहैया कराता है। फिर सत्या गांव से अपनी प्रेमिका चित्र (अनायका सोती) को भी मुंबई बुला लेता है, लेकिन उसकी
तरक्की आरके के बेटे टीके (अमल सहरावत) को हजम नहीं होती और वो आरके की सहमति से एक दिन सत्या पर हमला कर देता है। हमले के बाद से स्पेशल को सत्या पर शक होने लगता है। इसके बाद सत्या अंडरवर्ल्ड की
एक कंपनी बनाता है, जिसका खौफ वो उद्योगपतियों, पुलिस, मीडिया और नेताओं में बैठाने लगता है। जल्द ही वो बड़े लोगों को अपना निशाना बनाने लगता है। कंपनी की हरकतों से पुलिस प्रशासन सकते में आ
जाता है और एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी पुरुषोत्तम (कुशाल कपूर) की देखरेख में एक गुप्त टीम का गठन किया जाता है, जो पहले नारा को पकड़ती है और फिर स्पेशल के जरिये सत्या तक पहुंच जाती है। एक लाइन
में कहा जाए तो ‘सत्या 2’, ‘सत्या’ के मुकाबले बेहद कमजोर फिल्म है। ‘सत्या’ के मुकाबले ये कहीं नहीं टिकती। न कहानी के मामले में, न अभिनय के मामले में, न गीत-संगीत के मामले में और न ही निर्देशन
के मामले में। फिल्म के मुख्य किरदार सत्या के रोल के लिए पुनीत सिंह रत्न का चुनाव भी सही नहीं लगता। हालांकि पुनीत ने कोशिश काफी की है, लेकिन उनकी आंखें इस किरदार का साथ देती नहीं दिखतीं।
बाकी कलाकार भी नए हैं, जो जरा भी नहीं जमे हैं। फिल्म की कहानी में अंडरवर्ल्ड की जिस कंपनी का जिक्र है और उसकी जिस ‘सोच’ की बात की जा रही है, वो फिल्म में कहीं दिखाई नहीं देती। आखिर सत्या का
मकसद क्या है! क्या वो सिर्फ हजारों करोड़ रुपये कमाना चाहता है या फिर भ्रष्ट सिस्टम साफ करना चाहता है। दरअसल वो दोनों काम करना चाहता है, पर क्यों? ये कहीं साफ नहीं है। उसके पिता को नक्सलियों
ने मार डाला है। तो क्या वो उसका बदला मुंबई में आकर ले रहा है! उसे बड़े पैसे वाले लोगों से नफरत है। तो फिर वो उन्हीं के पैसों से कंपनी कैसे खड़ी कर रहा है! और सबसे बड़ी बात ये कि वो पैसे वाले
लोग उसे फंडिंग क्यों कर रहे हैं, जबकि वो तो खुद भ्रष्ट हैं और सिस्टम से तंग भी! सत्या की कंपनी एक साथ इतने बड़े लोगों को मार गिराती है, ये बात भी हजम नहीं होती। दरअसल सत्या प्रतिशोध की आंधी
में सबको बहा ले जाना चाहता है। इसके लिए वो एक कंपनी बनाता है, लेकिन उस कंपनी का कोई आधार ही नहीं है। सिवाय इसके कि उसमें वो एक सस्पेंड पुलिसकर्मी और एक फाइनेंशियल एक्सपर्ट को जोड़ता है।
बावजूद इसके पुलिस उस तक पहुंच जाती है। तो स्मार्ट कौन हुआ? पुलिस या सत्या? रामू के ब्रांड की साख अब खत्म होती जा रही है, ये उन्हें समझना चाहिए। इसलिए ‘सत्या 2’ का सत्य यही है कि अब बहुत हुआ
रामू, मत बनाओ और मामू! सितारे: पुनीत सिंह रत्न, अनायका सोती, आराधना गुप्ता, महेश ठाकुर, अमिर्तियान, राज प्रेमी, कुशाल कपूर, अमल सहरावत निर्देशक: राम गोपाल वर्मा निर्माता: एम. सुमंत कुमार
रेड्डी, डॉ. अरुण कुमार शर्मा बैनर: मैमथ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट प्रा. लि., एलआर मीडिया संगीत: संजीव राठौड़, दर्शन राठौड़, नितिन रायकर, डी. कैरी अरोड़ा गीत: कुमार, नितिन रायकर कहानी-पटकथा:
राधिका आनंद
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