झारखंड: खूंटी लोकसभा सीट में 6 मई को चुनाव का बहिष्कार करेंगे आदिवासी
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चुनाव प्रचार का शोर झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुनाई नहीं देता जहां गांव के प्रवेशद्वार पर ही 'पत्थलगड़ी' लगी है जिस पर लिखा है कि यहां के निवासी अपने नियमों से ही
नियंत्रित हैं... एजेंसी खूंटी (झारखंड)।Sun, 5 May 2019 04:37 AM Share Follow Us on __ चुनाव प्रचार का शोर झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुनाई नहीं देता जहां गांव के प्रवेशद्वार पर
ही 'पत्थलगड़ी' लगी है जिस पर लिखा है कि यहां के निवासी अपने नियमों से ही नियंत्रित हैं और सभी बाहरी प्रतिबंधित हैं, चाहे वे नेता हों या कहीं से घूमते फिरते आया कोई आगंतुक। देश के
अन्य क्षेत्रों के उलट ये गांव, विशेष तौर पर पत्थलगड़ी के तहत आने वाले गांव अलग नियमों से शासित होते हैं जहां 'ग्रामसभा या ग्रामीण पंचायत सर्वोच्च होती है। झारखंड की राजधानी रांची से
मात्र 50 किलोमीटर दूर स्थित खूंटी जिले में 100 से अधिक पत्थलगड़ी गांव हैं जहां आदिवासी किसी प्राधिकारी को नहीं मानते और संविधान के प्रति निष्ठा नहीं रखते। यह बिरसा मुंडा की धरती है जिन्होंने
19वीं सदी में अंग्रेजों के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया था और। बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है। खूंटी झारखंड के 14 संसदीय सीटों में से एक है जो आरक्षित है। यहां मुकाबला भाजपा नेता एवं
पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और कांग्रेस के कालीचरण मुंडा के बीच है। यहां मतदान छह मई को होने वाला है। मतदाताओं के बीच अजीब सी चुप्पी व्याप्त है। आदिवासी कह रहे हैं कि वे चुनाव का बहिष्कार
करेंगे। माकी टूटी (42) ने भंडरा गांव के बाहर लगे पत्थलगड़ी की पूजा करने के बाद दावा किया, ''हमारे अधिकार (मुख्यमंत्री) रघुबर दास ने छीन लिये हैं। कोई अधिकार नहीं, कोई वोट नहीं।
ग्रामीण हरेक बृहस्पतिवार को पत्थलगड़ी की पूजा करते हैं। गांवों में दिकुओं या बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश की सख्त मनाही है लेकिन यह रिपोर्टर ग्रामीणों से बात करने के लिए पत्थलगड़ी नेताओं के
जरिये प्रवेश करने में सफल रही। छह मई के चुनाव में मात्र एक दिन बचे हैं लेकिन 11 में से कोई भी उम्मीदवार अभी तक अंदरूनी क्षेत्रों में नहीं पहुंच पाया है। इन लोगों को सरकार और चुनावी व्यवस्था
में कोई आस्था नहीं है लेकिन यह तथ्य खाई को और बढ़ाता है कि खूंटी जिले के गांवों में सर्वाधिक मूलभूत सुविधाओं तक की कमी है।
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