पिघलते ग्लेशियर हम पर क्या असर डालते हैं
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बीते हफ्ते, स्विट्जरलैंड के आल्प्स में ग्लेशियर टूटने से ब्लाटन गांव में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हुई। ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना जलवायु परिवर्तन का संकेत है, जो दो अरब लोगों के पानी की
आपूर्ति को... डॉयचे वेले दिल्लीMon, 2 June 2025 09:07 PM Share Follow Us on __ बीते हफ्ते, स्विट्जरलैंड के आल्प्स पर्वतों में ग्लेशियर टूटने की घटना ने साफ कर दिया है कि गर्म होती दुनिया का
बर्फीले इलाकों पर कितना प्रभाव पड़ रहा है.ग्लेशियर, धरती के पानी का जमा हुआ भंडार होता है.यह पानी की आपूर्ति, पारिस्थितिक तंत्र और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने में मदद करते हैं.यह बर्फ की
चादर अब तेजी से पिघल रही हैं.लेकिन इसके पिघलने से हमें क्या नुकसान?बुधवार को जब बिर्च ग्लेशियर पिघल कर बिखरा, तो दक्षिणी स्विट्जरलैंड के वालिस इलाके में बसे ब्लाटन गांव को इसने अपनी चपेट
में ले लिया.ढेर सारे मलबे ने लॉन्जा नदी का रास्ता बंद कर दिया, जिससे बाढ़ जैसे हालात बन गए.हिमालय में बर्फबारी 23 साल के निचले स्तर पर, दो अरब लोगों पर खतरादुनिया के लगभग 70 फीसदी ताजे पानी
का भंडार ग्लेशियर के रूप में ही है.पहाड़ में ऊंचाई वाले इलाकों को अक्सर "पानी की टंकी" माना जाता है, क्योंकि गर्मियों में वहां जमी हुई बर्फ पिघलकर धीरे-धीरे नीचे के गांवों और खेतों
को पानी देती है.वैज्ञानिकों के मुताबिक, दुनियाभर में दो अरब लोग अपनी रोजमर्रा की पानी की जरूरत के लिए ग्लेशियरों पर निर्भर हैं.लेकिन लगातार गर्म हो रही धरती के कारण अब तेजी से बर्फ पिघल रही
है.ग्लेशियर ताजे पानी के लिए बहुत जरूरीबीस साल पहले की तुलना में आज ग्लेशियर दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं.2000 से 2023 के बीच में ही ग्लेशियरों ने इतनी बर्फ खो दी है, जो कि 46,000 मिस्र के
पिरामिडों के बराबर है.इसका असर पूरी दुनिया पर हो रहा है.कहीं पानी की भारी कमी हो रही है, तो कहीं जरूरत से अधिक पानी तबाही मचा रहा है.पेरू के पश्चिमी इलाके में बसे छोटे से शहर, हुआराज के लोग
अपनी सालाना पानी की जरूरत के करीब 20 फीसदी के लिए पिघलती बर्फ पर निर्भर हैं.दूसरी तरफ एंडीज पहाड़ों में मौजूद ग्लेशियर काफी तेजी से पिघल रहे हैं.इससे बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है.हुआराज के एक
निवासी ने दस साल पहले एक जर्मन ऊर्जा कंपनी पर केस कर दिया. उनका कहना था कि उसके घर के पास वाली झील पिघलती बर्फ से तेजी से भर रही है और उसके घर पर बाढ़ का खतरा आ गया है.पिघलता हुआ ग्लेशियर
पहाड़ों को अस्थिर बनाता हैसिर्फ पेरू ही नहीं, दुनिया के और भी कई पहाड़ी इलाकों में जब ग्लेशियर पिघलते हैं, तो विशाल झीलें बन जाती हैं.जब यह झीलें भर जाती हैं, तो इनपर फटने का खतरा बढ़ जाता है
और खतरनाक बाढ़ आ सकती है.इस बाढ़ में इमारतें, पुल और उपजाऊ जमीनें सब कुछ बह सकते हैं.अक्टूबर 2023 में पाकिस्तान में एक ऐसी ही झील फटने से भारी तबाही मच गई.उसी महीने, भारत में भी एक झील से
पिघला हुआ पानी बाहर आ गया और 179 लोगों की जान चली गई.हिमालय में ग्लेशियल बाढ़ के लिए चेतावनी का सिस्टमवैज्ञानिकों का अनुमान है कि दुनिया भर में कम से कम 1.5 करोड़ लोग इस तरह की बाढ़ के चपेट
में आ सकते हैं.जिसमें से ज्यादातर लोग भारत और पाकिस्तान में रहते हैं.1990 से अब तक इन पहाड़ी झीलों में पानी की मात्रा लगभग 50 फीसदी बढ़ चुकी है.स्विट्जरलैंड में बिर्च ग्लेशियर के ढहने से
भूस्खलन हुआ.इसके नतीजे में 300 लोगों की आबादी वाले ब्लाटन गांव के बड़े हिस्से में कीचड़ और मलबा भर गया.हालांकि, पहले से ही लोगों को सुरक्षा के लिए हटा लिया गया था, लेकिन एक व्यक्ति अब भी
लापता है.वैज्ञानिकों का कहना है कि यह जलवायु परिवर्तन का असर है, खासकर आल्प्स जैसे इलाकों में.कृषि और बिजली उत्पादन के लिए पानी की कमीग्लेशियर के सिकुड़ते रहने से एक समय आता है, जिसे
"पीक वॉटर" कहा जाता है.तब बर्फ से मिलने वाला पानी अपने चरम पर पहुंचकर घटने लगता है.जिसका नतीजा यह होता है कि नीचे की ओर बहने वाला पानी कम हो जाता है.जिसके काफी गंभीर असर होते हैं.
पानी की कमी ने किसानों को मजबूर कर दिया है कि वह अपनी पारंपरिक फसलें जैसे मक्का और गेहूं छोड़कर नई फसलें उगाएं और पानी को इस्तेमाल करने का तरीका बदलें.एंडीज पर्वत के कुछ इलाकों में अब किसान
अलग किस्म के आलू उगा रहे हैं, जो सूखे में भी टिक जाते हैं.पानी की इस अस्थिरता के कारण बिजली उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है.चिली में करीब 27 फीसदी बिजली हाइड्रोपावर बांधों से आता है, जो
ग्लेशियर के पिघलते पानी पर काफी ज्यादा निर्भर है.2021 में, अल्टो माइपो नामक के एक पावर प्लांट को बहाव कम होने की वजह से बंद करना पड़ा.समुद्र का स्तर बढ़ाती पिघलती बर्फसिर्फ ऊंचाई वाले इलाकों
के ग्लेशियर ही नहीं, बल्कि समुद्र में मौजूद बर्फीले ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं.जैसे कि थ्वाइट्स ग्लेशियर, जो पश्चिमी अंटार्कटिका में स्थित है.यह बर्फ का टुकड़ा आकार में अमेरिकी राज्य,
फ्लोरिडा के बराबर है और "बहुत अस्थिर" बन गया है.वैज्ञानिकों ने बताया कि यह चारों तरफ से पिघल रहा है.समुद्री बर्फ का पिघलना समुद्र के बढ़ते जलस्तर में अहम भूमिका निभाता है.थ्वाइट्स
ग्लेशियर को वैज्ञानिकों ने "डूम्सडे ग्लेशियर" यानी कयामत लाने वाला ग्लेशियर का नाम दिया है क्योंकि इसके पूरी तरह पिघलने से समुद्र का स्तर अचानक और तेजी से बढ़ सकता है.जिससे
करोड़ों लोगों खतरे में आ जाते हैं.पिछले 25 वर्षों में ही, पिघलते ग्लेशियरों के कारण समुद्र का जलस्तर लगभग दो सेंटीमीटर (0.7 इंच) बढ़ चुका है.प्रशांत महासागर में स्थित निचले द्वीप जैसे फिजी
और वानुअतु के लिए यह सबसे बड़ा खतरा है.यह द्वीप समुद्र में डूबने की कगार पर हैं.दुनिया भर में एक अरब से ज्यादा लोग ऐसे शहरों में रहते हैं, जो समुद्र के किनारे बसे हैं.जैसे जकार्ता, मुंबई,
लागोस और मनीला. यह सभी शहर समुद्र से सिर्फ दस किलोमीटर के दायरे में हैं.हालांकि बाढ़ को रोकने के लिए तटों पर बांध और दीवारें बनाई जाती हैं लेकिन यह केवल अस्थाई उपाय हैं.बर्फ से जुड़ी परंपराओं
पर भी खतरा ग्लेशियर सिर्फ पानी का ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का भी स्रोत हैं.हर साल कई हजार तीर्थयात्री पेरू के सबसे पवित्र ग्लेशियरों में से एक, कोल्केपुनको पर एक
धार्मिक उत्सव मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं.पहले, लोग इस ग्लेशियर से बर्फ के टुकड़े काटकर नीचे गांवों तक ले जाते थे.माना जाता था कि इन बर्फ के टुकड़ों में औषधीय गुण होते हैं.लेकिन अब
जैसे-जैसे यह ग्लेशियर गायब हो रहा है, यह प्राचीन परंपरा भी खतरे में पड़ गई है.आल्प्स के स्की रिसॉर्ट्स में बर्फ की कमी इटली का प्रेसेना ग्लेशियर, स्कीइंग के लिए काफी लोकप्रिय है.लेकिन 1990
से लेकर अब तक लगभग एक-तिहाई बर्फ गायब हो गई है.एक अनुमान के अनुसार इस सदी के अंत तक यूरोप के आल्प्स पहाड़ों की बर्फ लगभग 42 फीसदी तक कम हो जाएगी.इन्हें बचाने में चेतावनी प्रणाली और कृत्रिम
ग्लेशियर मदद कर सकते हैंस्थानीय लोग इन खतरों से बचने के लिए कुछ तरीके अपना सकते हैं.पाकिस्तान के हस्सनाबाद गांव में शिस्पर ग्लेशियर की गतिविधि पर नजर रखने के लिए एक चेतावनी प्रणाली बनाई गई
है.अगर कोई खतरा होता है, तो गांव में बाहर लगे स्पीकर के जरिए तुरंत सूचना दी जा सकती है.इसके पड़ोसी इलाके, लद्दाख में वैज्ञानिक कृत्रिम ग्लेशियर बनाने की कोशिश कर रहे हैं.यह ग्लेशियर गर्मियों
में पानी की कमी को दूर करने में मदद कर सकते हैं.लेकिन यह उपाय केवल कुछ हद तक ही कारगर है.वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने का सबसे अच्छा तरीका केवल धरती के तापमान को
बढ़ने से रोकना है.
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