Mahabharat 3 may evening episode 74 written live updates: कुरुक्षेत्र के मैदान में आमने-सामने आए दुर्योधन और अर्जुन, भीष्म पितामह शंख बजाकर करेंगे युद्ध आरंभ

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Mahabharat 3 may evening episode 74 written live updates: कुरुक्षेत्र के मैदान में आमने-सामने आए दुर्योधन और अर्जुन, भीष्म पितामह शंख बजाकर करेंगे युद्ध आरंभ"


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देश में लगे लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन पर प्रचलित धार्मिक सीरियल 'महाभारत' का प्रसारण हो रहा है। दर्शक इस सीरियल को बहुत पसंद कर रहे हैं। अब तक आपने देखा कि महल में बैठे धृतराष्ट्र,


कृष्ण को... देश में लगे लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन पर प्रचलित धार्मिक सीरियल 'महाभारत' का प्रसारण हो रहा है। दर्शक इस सीरियल को बहुत पसंद कर रहे हैं। अब तक आपने देखा कि महल में


बैठे धृतराष्ट्र, कृष्ण को लेकर काफी क्रोधित होते हैं। अर्जुन कहते हैं कि अगर ज्ञान इतना महत्वपूर्ण है तो मैं क्यों युद्ध कर ये पाप करूं। मैं ज्ञान योग्य के मार्ग पर क्यों नहीं चल सकता। इसके


बाद कृष्ण कहते हैं, कर्म तो करना ही होगा। कुछ न करने से अच्छा है कर्म करो। कर्म आवश्यक है, किंतु ज्ञानी पुरूष की तरह कर्म करो। कर्म ऐसे करो जैसे यज्ञ किया जाता है। कृष्ण आगे कहते हैं कि समाज


में तुम नहीं हो पार्थ, तुम पूरा समाज हो। मुझे देखो त्रिलोक में मेरे लिए कुछ नहीं है, लेकिन मैं फिर भी कर्म कर रहा हूं। कृष्ण की बात सुनकर संजय और धृतराष्ट्र भी चौंक जाते हैं। धृतराष्ट्र डर


रहे हैं कि कहीं कृष्ण की बात मानकर अर्जुन युद्ध के लिए तैयार न हो जाएं।  8:02 PM- दुर्योधन भीष्म से पूछते हैं कि हम युद्ध शुरू क्यों नहीं कर रहे हैं। भीष्म कहते हैं कि जब तक मैं शंख न बजा


दूं तब तक यह युद्ध शुरू नहीं होगा। वासुदेव और अर्जुन के बीच जो बात हो रही है उसका एक भी कण हमें सुनाई नहीं दे रहा है। उधर, दुर्योधन युद्ध शुरू करने के लिए व्याकुल हो रहे हैं। भीष्म कहते हैं


कि मैं जहां खड़ा हूं वहां से इस युद्ध के शुरू करने का शुभ मूहुर्त दिखाई नहीं दे रहा है।  7:56 PM- धृतराष्ट्र को संजय बता रहे हैं कि कुंती पुत्र अर्जुन ने धनुष उठा लिया है। धृतराष्ट्र कहते


हैं कि युद्ध होना अब तय है और मैं इसका परिणाम भी जानता हूं संजय। अगर तुम मुझे छोड़कर जाना चाहते हो तो जा सकते हो। संजय कहते हैं कि अगर यह आपका आदेश है तो मैं इसका पालन करूंगा। धृतराष्ट्र


कहते हैं कि संयज तुम ठहर जाओ सिर्फ यह बताने के लिए अर्जुन का पहला बांण किसे लगा। मैं जानता हूं कि मेरा प्रिय दुर्योधन तो युद्ध के लिए व्याकुल हो रहा होगा। वह जानता है कि इस युद्ध का परिणाम


क्या होगा फिर भी वह यह कदम उठा रहा है। वह क्षत्रिय है। वह सब कुछ जानता है। धृतराष्ट्र बेहद दुखी हो रहे हैं। यह युद्ध मेरे और वासुदेव के बीच हो रहा है संजय। पांडव और दुर्योधन के बीच नहीं। मैं


इस युद्ध को रोक नहीं सकता और न ही रणभूमि में पीठ दिखा सकता। हो जाने दो यह युद्ध। हस्तिनापुर के विषय में मैं अब नहीं सोचूंगा। हस्तिनापुर ने मेरे सारे अपमान चुपचाप देखे। किसी ने कुछ नहीं कहा।


हस्तिनापुर मेरे साथ हुए अन्याय का कुछ तो कीमत चुकाए। इस युद्ध में मुझे और वासुदेव हम दोनों को कोई न कोई कीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन अब युद्ध शुरू होने में इतना वक्त क्यों लग रहा है।  7:40 PM-


धृतराष्ट्र, संजय से पूछते हैं कि मुझे बताओ कृष्ण और अर्जुन के बीच क्या हो रहा है। यह दिव्यदृष्टि है। मुझे बताओ क्या हो रहा है संजय। वहां, कृष्ण अपने पुराने रूप में वापस आ जाते हैं। अर्जुन,


कृष्ण का आशीर्वाद ले रहे हैं और उनसे क्षमा भी मांग रहे हैं। कृष्ण कह रहे हैं कि जो मेरा भक्त है, जो मेरे में सदेव लीन रहता है, वही उत्तम योगी है। तुम क्षमा मत मांगो पार्थ। मेरी भक्ति श्रेष्ठ


हैं। जो भक्त हैं वे ही संसार में नहीं उलझते। हे पार्थ, यह संसार तो मानों पीपल का वृक्ष है। इसकी जड़ें मानव गहराई में फैली हुई है। इस वृक्ष का आदि, अंत और आधार क्या और कहां है कोई नहीं देख


सकता। कोई इसे नहीं काट सकता। पार्थ अगर तुम्हें सोचना हो तो मेरे ही विषय में सोचा। पूजना हो तो केवल मुझे ही पूजो। किसी के बारे में मत सोचो। सब मुझपर छोड़ दो। मुझी में मन लगाओ पार्थ। मेरे भक्त


हो जाओ और मुझे ही मनस्कार करो पार्थ। अगर तुम ऐसा करते हो तो मैं समझ जाऊंगा कि संपूर्ण रूप से तुम मेरे हो गए हो पार्थ। मैं तुम्हें सारे पापों से मुक्त कर दूंगा इसलिए शोक न करो प्रिय। योगी के


भांति निशकाम कर्म करो। चिंता मत करो, मुझमें विश्वास रखो। युद्ध करो पार्थ। अर्जुन, कुरुक्षेत्र के मैदान में दुर्योधन संग युद्ध के लिए तैयार हैं। 7:23 PM- अर्जुन कहते हैं कि हे श्री कृष्ण आप


ईश्वर हैं और परमात्मा हैं। मैं आपको पहचानूं कैसे। कृप्या चीजें विस्तार से मुझे बताइए। कृष्ण कहते हैं कि मेरे विस्तार का तो अंत ही नहीं है। मैं हर प्राणी में हूं। मैं वेदों में सामवेद हूं।


मैं प्राणियों में चेतना हूं। मैं राक्ष्सों में कुबेर हूं। मैं वृक्षों में पीपल हूं। मैं शस्त्रों में वृज हूं। मैं पक्षियों में गरुड़ हूं। मैं कभी न समाप्त होने वाला समय हूं। मैं ही मृत्यू


हूं पार्थ। मैं ही उन सबका आरंभ हूं जो जन्म लेने वाले हैं पार्थ। मैं स्त्रियों में कीर्ति हूं पार्थ। मैं ऋतुओं में ऋतुराज हूं। मैं गुण हूं, मैं विजय हूं, मैं वासुदेव हूं और पांडवों में अर्जुन


हूं। मैं ही तो उत्पत्ति का बीज हूं पार्थ, मेरे बिन तो हो ही नहीं सकता। मैं प्राणों का प्राण और जीवन का जीव हूं। अर्जुन तुम मेरा असल रूप नहीं देख सकते हैं। इसे देखने के लिए तुम्हें


दिव्यदृष्टि की जरूरत होगी। कृष्ण, अर्जुन को आशीर्वाद देते हैं और दिव्यदृष्टि प्रदान करते हैं। अर्जुन को ओम् दिखाई देता है। अर्जुन को कृष्ण के कई रूप नजर आते हैं। कृष्ण एक ओर से लोगों के


प्राण ले रहे हैं तो दूसरी ओर से नए लोगों को जन्म दे रहे हैं। अर्जुन को आशीर्वाद देने के लिए महादेव और ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रकट होते हैं। अर्जुन कहते हैं कि आपके इस अद्भुत विराट दर्शन से मैं


हैरान हो रहा हूं। मुझपर प्रसन्न होकर अपने उसी पुराने रूप को फिर से प्रकट कीजिए।   7:11 PM- धृतराष्ट्र और संजय बैठकर युद्ध के बारे में बातचीत कर रहे हैं। धृतराष्ट्र, कृष्ण द्वारा बताई गईं


चीजें समझ रहे हैं। वहां, अर्जुन को कृष्ण कर्म और ज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं। वह कह रहे हैं कि जो लोग ज्ञानी होते हैं वही इस धरती पर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। ज्ञान प्रकाश है, तुम इस प्रकाश


को प्राप्त करो। तुम भटकने से बच जाओगे। और तुम्हें शांति मिलेगी। और शांति का सीधा मार्ग मैं हूं। जो लोग मुझे हितैशी मानते हैं उन्हें ही शांति का मार्ग प्राप्त होता है। पार्थ यह तुम्हारी


समस्या नहीं है कि युद्ध में कौन मरेगा और कौन जिएगा। मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह स्वंय ही अपना उद्धार करे। वही खुद के मित्र हैं और खुद के शत्रु भी। जो व्यक्ति मान-अपमान में विश्वास न रखे वह


सदेव परमात्मा में विलीन रहता है। संतुलित जीवन जिओ पार्थ। चंचल मन को बस में करो पार्थ, उसे भटकने मत दो। मुझ में विलीन हो जाओ पार्थ। मैं ही सब कुछ हूं। न मैं किसी का प्रिय हूं न कोई मुझे


प्रिय। जो लोग मुझमें हैं मैं उनमें हूं। पार्थ खुद को मत भटकने दो। अपना कर्म करो।  7:05 PM- कृष्ण पार्थ यानी अर्जुन को कर्म के बारे में समझा रहे हैं। वह कहते हैं कि पार्थ तुम कर्म करते रहो।


समाज का ध्यान रखो, फल की चिंता मत करो। तुम ज्ञान योगी बनो, तभी कर्म कर पाओगे। 


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