कहानी: किंग लियर के वंशज

Jansatta

कहानी: किंग लियर के वंशज"


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उस पुराने खानदान के हम और हमारे पुरखे बड़े वफादार खिदमतगार थे। अब बाबू, मेरे नाती निर्मोहिया से यह सब मत कहिएगा, नहीं तो वह जामा से बाहर हो जाएगा। मेरे बाप जिंदगी भर पौला ही पहिने- जूता चप्पल


तौ बड़े आदमिन कै चीज है। यहां तक कि खड़ाऊं भी पहनने की औकात नहीं रही। मुला निर्मोहिया तौ भटभटिया पर चढ़ा घूमता है। अपने बचपन में तो हमने ऐसा दिन देखा है कि हमारी दीदी यानी महतारी टिमाटर तरकारी


का नाम तक नहीं जानती थीं। वह बखरी में जातीं और बड़की मलकिन से बोलतीं, ‘मलकिन हम्मै ऊ तरकरिया चाही जौन खटलुस-खटलुस लागत है।’ तब बड़की मलकिन मुस्करा कर कहतीं, ‘चौधराइन टमाटर कहौ, तू तौ लुटिया


डुबाय दिहव।’ फिर वे उतरौला, तुलसीपुर या बलरामपुर की मिठाई का एक टुकड़ा मुझे देतीं और दुलरातीं।


हम जितने पवनी-परजा रहे, उनको हमारे मालिकान अपना परिवार मानते थे। उस जमाना मां गांव में तीन घर छोड़ि कै बाकी सब भूमिहीन। कड़कड़ाती गर्मी और लू के बाद जब बरसात का छिलका पड़ता, सारे बड़मनई लोग खुश


हो जाते, मुला पूरे गांव मां ई चिंता ब्याप जाती कि पेट कैसे भरेगा। लगभग आठ हलवाहे रहे, एक बिसरवारी यानी सिवाने कै रखवार। महरा-महरिन तौ घर कै परिवारै अस। जब भाता का गल्ला खतम हो जाता, तब लगभग


दस परिवार के लोग जाते और चार-चौमासे के लिए बखरी से गल्ला ले आते। शर्त यह होती कि अगली फसल होने पर हम लोगों के हिस्से में से काट लिया जाएगा। जब धान का बियाड़ा रोपनी के लायक होता, सारी


मजदूरिनें तलब की जातीं। जो लड़िकौर यानी कि बच्चों को दूध पिलाने वाली होतीं उनके बच्चे धान के खेत में बुला लिए जाते। दूसरे गांवों में मजदूरिनें बच्चे को दूध पिलातीं और उनकी क्या मजाल कि बच्चे


को लाड़-दुलार दिखा दें। मुला बप्पा मालिक कै हुकुम कुछ दूसर। वे कहैं कि दूध न हजम होई अगर बच्चन कै दुलार न होई। जौ ससुर बीस तीस मन धान कमै पैदा होय गवा तौ कहूं परलय आय जाई बहिन?… पूरा जवार


असीसै कि मालिक होय तौ ऐसै होय। हम तौ बचपन कै शादी-बियाहौ देखे हैं। पूरा दुआरा देसी औ कलारास (अरबी) घोड़न से भर जाता था। रिश्तेदारी की मलकिन लोग बाल-बच्चे समेत बहुत पहले से आ जातीं। पूरा


चकल्लस और शादी के बन्नों से गांव गूंज उठता : कहवां कै ग्वालिन कहवां बेचैं दहिव रे दहिव और काट कटैला औ झरबैला चीरत-फारत आएव रे/ जौने रहिया से आएव दुलहे राजा वही रहिया से जाएव रे। आधा पेट


खाते, लेकिन लोग खुसीखुर्रम से रहते। महीने भर सात-आठ घरों में नाम के लिए चूल्हा जलता। नाऊ दूसरे गांव से आता। वह मालिकान के लिए घर का परानी। नउनिया बड़ी कटीली। बला कै बन्ना गावै। जो मालिक


रिश्तेदार जीजा और फूफा लगते थे नउनिया बन्ना गाकर उनकी ऐसी-तैसी कर डालती। लेकिन कोई बुरा न मानता। लेकिन भैया, समय बड़ा बलवान। सन बावन कै बाद से सब कुछ उलट-पुलट गवा।


तनिक-तनिक याद है। बप्पा मालिक के घर नाती ने जनम लिया था। दादा यानी मेरे बाप बताते कि डेढ़ हज्जार लोग खाना खाइन रहा। बिस्कोहर बजार से पतुरिया आई। तीन-चार सोहर सुन कर बुड्ढे मालिक लोग टिरिक गए।


अब मैदान खाली होय गवा, भैया लोगन के लिए। तब जवान मालिक औ गांव कै लुंगाड़े जुटे। गंगाजली को सब लोग देखना चाहते, नाचते देखना चाहते और सुनना चाहते। पहला नोनखार गाना गाया : मेरे हाथ में मेंहदी


लगी है, लट उलझी सुलझाय जाओ बालम/ मेरी खिसक गई माथे की बिंदिया अपने हाथ लगाए जाओ बालम। अक्खा गांव पूरी राति जागत रहा। मुला, यह सब राग रंग उड़ गया। खेत ज्यादा रहा औ बहिन… लगान के लिए गल्ला कम


पड़ जाता। उधार और तंगी का आलम सुरू होय गवा। कभी बच्चे पैदा होते ही मर जाते थे, फिर ऐसा दौर आया कि लड़िका-लड़किन से बखरी गंधाय लागि। तुलसीदस जी कहि गए हैं कि या तौ निरबंसे नास, नाहीं तौ बहु बंसे


नास। नाती, नातिन कै कपड़ा-लत्ता, साज पहिरावा, पढ़ाई-लिखाई सादी-बियाह सब बखरी के जिम्मे। और मालिक लोगन कै हाथ खुला। सान मान तौ खून में ही था। कोठी का कोठी बांस लगा रह जाता, लेकिन मुफत में दै


देयं मुला बेचै कै नाम पर। अहां! जब कोई छोटमनई कहै कि भैया बंसवा बेचि डारा जाय, तब मालिक लोग तमंचा अस दगैं, ‘लागि रहै देव भले आदमी, तोहरे मुड़वा पै तो नाहीं लाग है!’ मालिक लोग बुरा आदमी नाहीं


रहे। मुला आपन भलमंसी, जमीन जायदाद संभारि न पाइन। जब ज्यादा कलह बढ़ा, बंटवारा हो गया। बंटवारा का मतलब महाबिनास। सबसे बड़े लड़के बंटवारे के बावजूद अपने पूरे खानदान को एक मानने वाले पूरे मर्दराज।


ऐसा लगा कि पानी सिर के ऊपर चला जाना है। सुनते हैं, सभी भाई लोगों पर कर्ज सवार हो गया। और पूरी बखरी भंभ रटने लगी। पूरे पांच बीघे में फैली बखरी चार टुकड़ों में बंट गई। बड़े से खपरैल घर की जगह


तीन पक्के मकान खड़े हो गए। बीच में दीवारें भी उठा दी गर्इं। सबसे छोटे दो भाइयों ने तो अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए जमीन भी निकाल डाली और उस जमाने में जमीन का कोई मां-बाप नहीं था। एकदम औने-पौने


दाम पर बेशकीमती जमीनें बेच दी गर्इं, जो अब दूसरों के लिए सोना उगलती थीं। लेकिन, बप्पा मालिक के मरने के बाद परिवार को सबसे बड़े बेटे ने संभाला।


हमारे मालिक लोगों में एक बात थी कि हिंदू-मुसलमान वाली तास्सुबी भावना से दूर रहे। हमारे तालुके के नवाब साहब को जब पता चला कि पंडित जी लोग तंगी में हैं, उन्होंने कुंदन भैया को बुलवा भेजा। नवाब


साहब तो पूरे नवाब साहब ही निकले। कुंदन भैया ने लौट कर मुझे बताया कि नवाब साहब ने बड़े सलीके से बात की। बप्पा मालिक कहा करते थे कि तमीज औ तमद्दुन सीखना हो तो किसी मुसलमान या कायस्थ से सीखो।


समझा-बुझा कर उन्होंने कुंदन भैया को अपनी रियासत में एक अफसर बना दिया और यह ठीक हो गया कि हर महीने बखरी में लक्ष्मी जी का आगमन पक्का है। अब भैया, हम तौ ठहरे छोट मनई, अगर कुछ बोलेंगे तो आप बड़


मनई लोग कहेंगे छोटे मुंह और बड़ी बात। इतने रहीस खानदान के लोग पहले कुंदन भैया को ‘बहुत महीन’, ‘चालू’ और ‘बप्पा के इकलौते दुलरुवा’ और ना जाने क्या-क्या कहते थे, लेकिन जैसे उनके पास नगद नारायन


दिखे, सारे भाई लोग भैया, दद्दा, दद्दा कहते उनके पूरे मुरीद हो गए। बारी-बारी से लोग उनके पांव, हाथ दबाने लगे। हर दिन किसी न किसी भाई के घर से एक दो बिंजन बड़े दद्दा के घर पहुंचने लगा। कहिन कि


सुर नर मुनि सब की यहि रीती। स्वारथ लागि करैं सब प्रीती  यहीं यह खिस्सा एक खतरनाक मोड़ लेता है। बड़की मलकिन थोड़ी खुरुश मिजाज कै रहीं और उनके नैहर वाले लोग थोड़े उस टाइप के थे, जिसे बड़मनई लोग


चुहिट्ट आउर ग्रामजाचकी वाले बाभन कहते हैं। वे लोग हमारे मालिकान से जलते भी रहे। बप्पा मालिक बताते थे कि एक बार उनकी परदादी के घर से कुंदन भैया के दो ससुर कई थैला भर कर साहजहानी असर्फी लै आए


रहे और बप्पा मालिक ने अपनी उन परदादी की कोई संपत्ति नहीं ली। परदादी का कसूर यह था कि उन्होंने कभी बप्पा मालिक के बाप से ज्यादा त्वज्जो अपने मायके वालों को दिया था। उनका मायका वहीं था, जिस घर


में कुंदन भैया की ससुराल थी। खुन्नस चलती ही रही। कुंदन भैया की दुलहिन यह बात तनिक भी नहीं पसंद करती थीं कि उनके शौहर भाइयों की सहायता करें, लेकिन कुंदन भैया ने अपने बाप की हर परंपरा का पालन


किया।


भाइयों में तो आहार-विहार में कोई फर्क नहीं आया, लेकिन भाइयों के लड़के-लड़कियां तो थोड़े दुरौझा हो गए और अक्सर आपस में सींग लड़ाने लगे। अबकी बड़ी मालकिन यानी कुंदन भैया की दुलहिन नीम के पेड़ पर चढ़ा


करेला बन गर्इं। उनके भाई-भतीजे उन्हीं असरफियों को बनीज में लगा कर खुशहाल हो गए थे। अब सबर्न लोग जब कहते हैं कि गगरी म दाना सूद उताना, तब ई बात हम्मै अधूरी लगती है। चाहे बाभन, ठाकुर ही क्यों


न हों, दरिद्र होने के बाद दो पैसा देखते ही अपना सिर बंड़ेर (छत) पर मारने लगते हैं। एक दिन सबसे बड़ी जेठानी अपनी एक देवरानी से भिड़ गर्इं। दोनों मालिक लोग बाहर रहे और दुलहिनों ने अपने नाखून और


दांत निकाल लिए जूझने के लिए। दोनों तरफ से ऐसा कटाजुज्झ मचा कि कि पूरा गांव थुड़ी-थुड़ी करने लगा। सब छुटभैए कहने लगे, ‘हद्द हुई गवा, एतना गाली-गुफ्तार तौ सूद बाबर के घर मां भी नाहीं चलत है।’ जब


कुंदन भैया के कान में बात पड़ी, उन्होंने बड़की मलकिन को भी उलटा-सीधा सुना दिया। वे दिल कै मरीज रहीं। उन्हें कुंदन भैया लखनऊ लै गए, लेकिन एक महीने के अंदर वे चल बसीं। फिर जइसे गोसार्इंजी बोले


हैं कि हानि लाभ जीवन मरन जस अपजस बिधि हाथ। बड़े मालिक कै तीनों बेटे बाप की सकल से नफरत करने लगे। उन्होंने बांट लिया और तीन साल के अंदर दोनों ट्रैक्टर बिक गए। दूसरे भाइयों के परिवार व्यापार और


राजनीति में आकर आगे बढ़ गए। मगर बड़ी पट्टी गरीबी के लपेट में आ गई। तीनों बेटों को बेहतर स्कूलों में रखा गया था। मुला रियासत में भी अब पहले वाली बात कहां! धीरे-धीरे सारी माया मायापति के पास


चली गई। जब मेरे जैसे छोट मनई आगे बढ़ गए, तब बखरी कै मालिक लोग एक साथ हज्जार रुपए निकालने के लायक भी न रह गए। कुंदन भैया का मन अब सहर से उचट गया और गांव लौट आए। तीनों लड़कों और नाती लोगों ने


शहर का घर छेंक लिया। कुंदन भैया का सबसे छोटा नाती विराट गांव की खेती-पाती और अपने आजा को संभालने के लिए गांव चला आया और उमर के साथ मालिक की काया धीरे-धीरे झरने लगी। खुराक एकदम कम हो गई, शरीर


आधा रह गया और वह उदास रहने लगे। जब पूछते तो वह बोलते, ‘राम फकीरे, हम सबर्न लोग दलित हो गए, तब भी खुस रहें तो कैसे रहें?’


कुंदन भैया तौ बिलडपिलेसर कै पुरान मरीज। एक दिन छोटके दमाद जी भूले-भटके बखरी चले आए। उनसे मालिक बड़े नाखुस रहते थे। लालची लोगों को वे फूटी आंख से भी नहीं देखना चाहते थे। बाकी, दामाद जी निकले


पक्के डरामाबाज। वे कहिन की बाबू जी, हमैं तीन लाख चाही। खुद न दै सकौ तौ नवाब साहेब से लोन देवाय देव। भैया चिढ़ कै बोले, ‘सारी जमीन जायदाद तुम्हारे सालों नाम है, सहर का घर भी। मेरे पास बैंक में


थोड़े से पैसे हैं हारी-बीमारी और मरनी-करनी के लिए। आपके साले लोग कितने लायकदार हैं यह बात तुमसे छिपी नहीं है। बेटा माफ करो। हम असहाय हैं।’दीक्षित जी आपन लहजा बदल दिहिन। बोले, ‘बाबू जी, अब तौ


लड़की बराबर कै हिस्सेदार है। नवाब साहेब से तौ बहुत माया लूटि लायव। अब बिटिया का तीन लाख रुपल्ली देय मा छाती फाटत है।’कुंदन भैया को जबर्दस्त गुस्सा आ गया। वे कहिन, ‘दान दहेज तौ मुंह मांगा


दिया, उस जमाने में पूरे चालीस हजार नकद तिलक में दिया। इतना लोन हो गया कि दोनों ट्रैक्टर बेचने पड़े। आपको शादी में ही बेटों से ज्यादा दे दिया?’ नाती विराट ने जब कहा-सुनी को खत्म करना चाहा,


दीक्षित जी ने उस पर हाथ उठा दिया। अब कुंदन भैया घायल शेर की तरह दहाड़े, ‘बस, बहुत हो गया। अपने को रोको, वरना इज्जत धूल में मिल जाएगी।’ लेकिन दीक्षित जी अब गाली-गलौज पर आ गए। इतने बड़े खानदान


का आदमी दामाद का अपमान कैसे करे! भैया उठे, तो लेकिन तुरंत धड़ाम से गिर पड़े। फालिज का इतना बड़ा हमला कि आवाज तक बंद हो गई। ई गिरल तौ भीसम पितामह कै सर सैया होय गया।भैया को देखने बाहरी लोग तो


आए, मुला घर के लोगों ने अपना दामन छुड़ा लिया। दीक्षित जी तौ जमाई राजा रहे। उन्होंने तो ऐसी एक्टिंग मारी, मानो हमरे मालिक का खाली एक झपकी आवा है। तुरंतै कार गाड़ी सजाइन और सान से हांकि कै आपन


रास्ता नापै लागे। तीनों बेटे सहर से आए और विराट से बोले, ‘बाबू जी का आखिरी समय है। रुपया पैसा तो है नहीं, अब सेवा करो।’ विराट का चेहरा गुस्से से लाल सुर्ख, लेकिन बड़ों से कुछ न बोले। कुनबे का


हर कोई आता और तकल्लुफ निभा के चलता बनता। सुर नर मुनि सबकी अस रीती/ स्वारथ लागि करैं सब प्रीती। फिर हम विराट भैया से बोलेन, ‘बेटा ई बताओ, रूपम भैया का नाहीं बताएव? कुंदन भैया तौ अपने बेटन से


ज्यादा मानत रहे उनका।’‘अब का बताई काका, ताऊजी से बताई तौ हमार बाप और दोनों चाचा लोग जलि भुनि कै खाक होइ जैहैं।’‘बच्चा, बाप औ काका लोगन कै मारौ गोली। खबर दै देव।’तब दूसरे दिन सबेरे रूपम भैया


एक दागदार औ एक नर्स लैके आए। साथ मां एक अस्पताली गाड़ी औ एक बोलारव। औतै विराट भैया का दस टेंढ़ सुनाइन। बोले कि हम्मै खबर तक ना दिहव। खानदानी महरिन औ हम्मै साथ लै गए। हमार तौ रसता भर आंखि बरसत


गा। बप्पा मालिक वाला दिल। हम रस्ता भर असीसतै गयन, ‘जियव रूपम भैया नर नाहर घर रहौ चाहे बाहर।’


जनैया तौ जानिन की तीन दिन के दवा-दारू मां रूपम भैया कै चार लाख खतम भवा मुला रूपम भैया कै बात छोड़ो, मलकिन के चेहरा पर भी सिकन नाहीं आवा। रूपम मालिक तौ कौनो साहब सूबा भी नहीं रहे खाली हिसाब


(अंकगड़ित) कै मास्टर, बाकी दुनिया-जहान कहत हैं कि टिसनी मां डीएम साहब से भी ज्यादा माया उनके घर आवत है। आखिर मालिक सरीर लखनऊ के अस्पतालै मां छोड़िन। किरिया करम गांवै मां भा। लोग कहैं कुंदन


भैया कै बेटेवे आठ दस हज्जार लगावै के बाद हाथ खींचि लिहिं। सब खर्चा रूपम भैया लगाइन। असली नौटंकी आखिरी दिन भवा। जब कुंदन भैया के सरपुत लोग चलै लागे बड़ा वाला बोला, ‘अनुपम भैया तब्बै खरच किहिन


जब उनके पास बहुत माया रहा। अगर हमसे कहते तौ आठ-दस लाख तौ हमहू कर्जा पानी के नाम पर दे सकते थे।’‘चाचा, एतना बढ़ि-चढ़ि कै गाल ना बजाओ। बनियागीरी कैके कोयला बासा कै चोरी के माल सेव नव बढुवा हओय


गयव। हमरे खानदान से तुलना न करौ। तोहार आजा हमरे पर्पाज कै अशरफी पर व्यापार कायम किहिन।’ अनुपम भैया कै गुस्सा परसुरामी होय गवा। आज जब गांव जवार में चर्चा चलती है लोग-बाग कहते हैं, ‘अब परिवार


पालक का जमाना नहीं रहा। अनुपम भैया और विराट जैसे लोग न होते तो कुंदन भैया जैसे बड़ मनई और सज्जन पुरुख मलमूत्र में लोट-लोट कर मरते। अब गांव में देवता नहीं रहते। हमारा हिंदुस्तान अमरीका बन


गया।’


आईपीएल 2025 के एलिमिनेटर में गुजरात टाइटंस और मुंबई इंडियंस मुल्लांपुर में भिड़ेंगे। जीतने वाली टीम क्वालिफायर-2 में पंजाब किंग्स से खेलेगी, जबकि हारने वाली टीम बाहर हो जाएगी। गुजरात ने


मुंबई को 7 में से 5 बार हराया है। मुंबई ने टीम में बदलाव किए हैं। गुजरात की बल्लेबाजी शुभमन गिल, साई सुदर्शन और जोस बटलर पर निर्भर है, लेकिन बटलर प्लेऑफ में नहीं खेलेंगे। गुजरात की गेंदबाजी


भी चिंता का विषय है।


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