लंगूर टेंशन कर रहे दूर!

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लंगूर टेंशन कर रहे दूर!"


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BY: INEXTLIVE | Updated Date: Wed, 20 Nov 2013 09:48:00 (IST) ये आयेगा, खायेगा फिर एक-एक को भगायेगा 'भाई सावधान हो जाओ अब हमारी धमाचौकड़ी के दिन खत्म होने वाले हैं। अब हम मनमानी नहीं कर


पाएंगे। न पब्लिक को परेशान कर पाएंगे और न ही सामान बर्बाद कर पाएंगे। शहर में कई जगहों पर लंगूर आने वाले हैं। उन्हें देखकर हमें पतली गली थामनी पड़ेगीÓ। बंदरों के बीच इन दिनों कुछ ऐसी ही


कानाफूसी चल रही होगी। पब्लिक और प्रापर्टी को बंदरों के उत्पात से बचाने के लिए अब काफी लोग लंगूर की सेवा लेने की तैयारी है। रेलवे एडमिनिस्ट्रेशन लंगूर लाने के इंतजाम में जुटा है। काशी


विश्वनाथ मंदिर प्रशासन भी लंगूर तलाश रहा है। सीएमओ आफिस समय-समय पर इनकी सेवा लेता रहता है। एक बार फिर वहां लंगूर का दबदबा होगा। कई मंदिर और मठ भी लंगूर को बुला रहे हैं। पूरे शहर में उत्पात


बंदरों का उत्पात पूरे शहर में है। सिटी की पॉश कालोनीज से लेकर तंग गलियों वाले मोहल्ले तक बंदरों ने अपना अड्डा बना रखा है। गवर्नमेंट ऑफिस, हॉस्पिटल और रेलवे स्टेशन पर भी बंदर जमे हुए हैं।


इन्हें कंट्रोल करने का हर तरीका बेकार साबित हो चुका है। बंदर सामानों को नुकसान करते हैं साथ ही लोगों को काटते हैं। हॉस्पिटल में मंकी बाइट के केसेस बढ़ते जा रहे हैं। लोगों में बंदरों का डर


कुछ इस कदर समाया है कि लोग अपने घरों के खुले हिस्से को लोहे की मोटी जालियों से ढकवा रहे हैं। पब्लिक मूवमेंट वाले प्लेसेस पर यह पॉसिबल नहीं है। इसलिए इन जगहों पर बंदरों का उत्पात भी काफी अधिक


है। अब बंद होगी धमाचौकड़ी बाबा विश्वनाथ के दरबार में लंगूर तैनात होंगे। काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में बंदरों का उत्पात बढऩे के कारण मंदिर प्रशासन ने यह निर्णय लिया है। यहां भी ढेरों


बंदर हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ ही आसपास मौजूद मंदिरों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। आस्था की वजह से वह बंदरों को खाने-पीने का सामान देते हैं। उन्हें कोई छेड़ता नहीं है। सोने


के लिए स्थान और खाने-पीने का सामान मिल जाए तो भला बंदर कहीं और क्यों जाएं। उनकी आबादी लगातार बढ़ती रहती है। नतीजा ये है कि नये दर्शनार्थी बंदरों के हुजूम से खौफ खाते हैं। बन रहे हादसे की वजह


कुछ दिनों पहले काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह से लगे बैकुंठ महादेव के स्वर्ण शिखर का एक बड़ा हिस्सा बंदरों की धमाचौकड़ी के चलते गिर गया था। पहले भी इस तरह की घटना हो चुकी है। बंदरों की वजह


से मंदिर परिक्षेत्र में दौडऩे वाले हाई वोल्टेज इलेक्ट्रिक वायर भी बड़ा खतरा बन सकते हैं। यही नहीं बंदर कई श्रद्धालुओं को काट चुके हैं। सुरक्षाकर्मी भी बंदरों की वजह से परेशान हैं।   हॉस्पिटल


में भी होगा मुस्तैद बंदरों को कंट्रोल करने के लिए मंडलीय हॉस्पिटल में कई बार लंगूर की सेवा ली गयी है। इस बार भी लंगूर लाया जा रहा है। इसे डेली वेज पर तैनात करने की तैयारी है। कबीरचौरा स्थित


मंडलीय हॉस्पिटल को भी बंदरों ने अपना अड्डा बना रखा है। हर वक्त यहां इनकी मौजूदगी रहती है। मरीजों और कर्मचारियों में हर वक्त इनका डर रहता है। इनसे बचाव के लिए लाठी-आदि लेकर चलते हैं। मरीजों


का खाना इनके हिस्से में भी चला आता है। कभी वह मेडिकल इक्वीपमेंट्स को बर्बाद करते हैं तो कभी डाक्यूमेंट्स फाड़ते हैं। कई बार बंदरों को यहां से हटाने की कोशिश हुई लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। अब


बंदर को भगाने का काम लंगूर करेंगे। ऐंठना है इनका कान कैंट रेलवे एडमिनिस्ट्रेशन भी जल्द ही अपने कैम्पस में लंगूर तैनात करने की तैयारी में है। लंगूर पालने वालों से सम्पर्क किया जा रहा है। जल्द


ही लंगूर कैंट रेलवे स्टेशन की सुरक्षा की कमान संभाल लेगा। एक ईम्प्लाई की तरह उसे बकायदा सेलरी मिलेगी। रेलवे स्टेशन पर बंदरों का भारी उत्पात है। प्लेटफार्म से लेकर यार्ड, पैसेंजर हाल, माल


गोदाम तक इनका कब्जा है। कंट्रोल न किए जाने की वजह से अब तो बंदर इतने निडर हो चुके हैं पैसेंजर्स के हाथ से खाने-पीने का सामान ले भागते हैं। यहां मंकी बाइट के केसेस भी बढ़ रहे हैं। मंदिरों को


भी मदद की दरकार शहर के कई और मंदिर और मठों पर बंदर अपना कब्जा जमाए रहते हैं। दुर्गाकुण्ड स्थित दुर्गामंदिर, दुर्गविनायक मंदिर, बनकटी हनुमान मंदिर, गुरुधाम मंदिर, बनखण्डी महादेव मंदिर समेत


ढेरों मंदिर और मठों में बंदर धमाचौकड़ी करते हैं। इनकी वजह से श्रद्धालु यहां आने से डरते हैं। कई बार तो बंदर उनका प्रसाद आदि छीन लेते हैं। किसी ने हटाने की कोशिश की तो मोर्चा खोल देते हैं और


लोगों को अपना निशाना बनाते हैं। बंदरों को हटाने का हर कोशिश फेल होने के बाद लंगूर की मदद लेने की तैयारी है। नसबंदी से ही होगा सॉलिड कंट्रोल बंदरों का लंगूर के जरिए कंट्रोल करने का तरीका फौरी


तौर पर तो ठीक है लेकिन समय तक काम नहीं करता है। यह कहना है एनिमल विहैवियर के एक्सपर्ट डा। पीके राव का। वह कहते हैं लंगूर के डर से बंदर कुछ दिनों तक उक्त स्थान को छोड़ देते हैं लेकिन फिर लौट


आते हैं। बंदरों को पकड़कर शहर के बाहर छोडऩे पर भी उनके लौटने की आशंका रहती है। बंदरों की आबादी को कंट्रोल करने पर ही इन पर लगाम लगाया जा सकेगा। इसका सबसे अच्छा तरीका नसबंदी करना है। कई


शहरों में यह तरीका अपनाया जा रहा है। बंदर पकडऩे वाली एजेंसी ने रोका काम नगर निगम ने बंदरों से शहर को निजात दिलाने के लिए इन्हें पकड़कर जंगल में छोडऩे का इंतजाम किया गया था। इसकी जिम्मेदारी


मथुरा की एजेंसी को दी गयी थी। एजेंसी ने कुछ दिनों तक काम किया। सैकड़ों बंदरों को पकड़कर मिर्जापुर के जंगल में छोड़ दिया। लेकिन सुविधा और पेंमेट को लेकर नगर निगम से उसकी नहीं बनी और एजेंसी के


मेम्बर शहर के उसके हालत पर छोड़कर मथुरा लौट गए।


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