दुनिया में महक रहा हिंदी का उपवन

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शिक्षकों और साहित्यकारों की जिम्मेदारी नहीं, घर से भी हो शुरूआत छात्रों में भी हिंदी भाषा को लेकर बढ़ रहा है क्रेज Meerut। हिंदी महज मातृभाषा नहीं एक संस्कार है, हिंदी हिंद के गौरव को बढ़ाने


वाली भाषा है, हिंदी है तो हम है, आज का युवा हिंदी भाषा से अछूता नहीं है, मातृभाषा की सेवा व इसे बोलने में संकोच कैसा, हिंदी के उत्थान व ्प्रचार प्रसार का जिम्मा केवल शिक्षकों व साहित्यकारों


का ही नहीं है, बल्कि हमारे घर से ही इसकी शुरुआत होनी चाहिए, शहर के साहित्यकारों व लेखकों व शिक्षकों के अनुसार आज का युवा हिंदी भाषा से अछूता नहीं, बस उसकी शुरुआत अपने घर से होनी बाकी है,


हमारे देश में हिंदी भाषा है जो बहुत ही सरल व मीठी है और उसे बोलने में जो प्रेम बरसता है वो कहीं और नही है। हिंदी तो हमेशा से ही प्रचलित रही है उसका एक अलग स्थान है, अब तो हिंदी को बहुत ही


प्राथमिकता दी जा रही है साहित्य में अब युवाओं ने पहले से भी अधिक रूचि लेनी शुरु कर दी है। दरअसल ये नही कहा जा सकता कि कभी इसका प्रचलन कम हुआ भी है, क्योंकि महज आंकडों के आधार पर हम नहीं कह


सकते कि हिंदी का प्रचलन कम है, क्योंकि अब गांव में भी कॉलेज खुल गए है ऐसे में स्टूडेंट ने अपने आसपास के कॉलेजों में ही एडमिशन लेने शुरु कर दिए है। हिंदी का क्रेज कम नहीं हुआ है न होगा, बल्कि


यूपी में तो खासतौर पर हिंदी भाषा का अधिक प्रयोग किया जाता है, सरकारी विभागों में भी अब हिंदी को ही प्रयोग किया जाता है, मेरे हिसाब से तो हर कोर्स में हिंदी को जगह देनी चाहिए, डॉ। नवीन


लोहानी, एचओडी , हिंदी सीसीएसयू साहित्य तो बहुत ही महत्वपूर्ण है, आज हिंदी साहित्य फिल्मी जगत में हो या किसी अन्य विभागों में सभी जगह हिंदी साहित्य को बहुत ही बड़ा स्थान प्राप्त है, हिंदी


भाषा जो आसानी से बोली जा सकती है, हिंदी को तो अब प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी शामिल किया गया है, भले ही किसी को लगता हो हिंदी लिखनी सरल है पर ये उतनी भी सरल नहीं, हिंदी अपने आपमें बहुत ही


प्रभावशाली भाषा है जिसमें आज का युवा रुचि ले रहा है, पहले भी लेता रहा है। गिरिश थापर, अभिनेता, लेखक हिंदी भाषा में अपने आप में ही बहुत ही अच्छी भाषा है, जो प्रेम हमारी मातृभाषा से झलकता है


वो कहीं नही है, किसी बात को अगर आप हिंदी में कहेंगे तो उसका अपना ही अलग महत्व है। बालक की प्रथम पाठशाला उसका घर है। घर पर संस्कारों की शिक्षा देते हैं। उसमें हिंदी की भाषा की शिक्षा दी जाती


है। परिजन स्वयं हिंदी का महत्व उसकी गरिमा को समझें। शुभम त्यागी, कवियत्री नई शिक्षा नीति में हिंदी को बढ़ाने के प्रयास किए गए हैं.मातृभाषा में ही कोर्स हो इसका ध्यान दिया जाए, ताकि हिंदी ही


पढ़ने में अधिक आए, हिंदी हमारी मातृभाषा है जो बहुत ही खूबसूरत है। अगर हिंदी है तो हम हैं, हिंदी से ही हम पहले बोलना सीखते है, देश की शान आन है हिंदी भाषा। आदशर्नी श्रीवास्तव, लेखिका बदहाली


पर आंसू बहा रहा हिंदी भवन मेरठ में पटेल नगर स्थित पुरुषोत्तम दास टंडन हिंदी भवन का नाम कभी हिंदी साहित्यकारों में न केवल चíचत था, बल्कि इतिहास के पन्नों में भी दर्ज था। शहर के नामचीन लोग इस


हिंदी भवन सोसायटी के पदाधिकारी थे,लेकिन समय के साथ यह भवन पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है, बल्कि इसकी जमीन पर कब्जा होने के भी आरोप लग रहे हैं। यहीं नहीं हिंदी भवन की आठ सौ वर्ग जमीन पर भैंसों


की डेयरी चल रही है। नहीं मिलती सहायता शहर के पटेलनगर में मौजूद हिंदी भवन की दुर्दशा पर न तो अधिकारियों की नजर हैं और न ही क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की, हिंदी भवन के केयर टेकर प्रेम प्रकाश


हैं, उनका कहना है कि हिंदी भवन की देखरेख का कार्य पुरुषोत्तम दास टंडन हिंदी समिति करती थी, लेकिन अब तो हिंदी भवन ही खत्म हो गया है समिति भी खत्म हो चुकी है, इसको सरकारी स्तर पर कोई सहायता तक


नहीं मिल पाती थी। करते थे पीएचडी स्टूडेंट हिंदी भवन समिति के मंत्री दिनेश चंद जैन ने बताया कि 1965 में यह हिंदी भवन स्थापित हैं, यहां की लाइब्रेरी में चार हजार से अधिक हिंदी की पुस्तके हुआ


करती थी, 25 साल पहले की बात है उस समय लाइब्रेरी से स्टूडेंट हिंदी के बारे में जानकारी हासिल कर अपनी पीएचडी करते थे, लेकिन अब सिर्फ यादें शेष बची हैं। ऐसे खुली डेयरी बताया गया कि करीब 40 साल


पहले समिति के एक पदाधिकारी ने थापरनगर निवासी अपने एक मित्र को गाय पालने के लिए इस परिसर में जगह दी थी। लेकिन उक्त व्यक्ति ने गायों की संख्या बढ़ाते हुए पूरी डेयरी तैयार कर दी.जब डेयरी खुली


तो उसका किराया हिंदी भवन समिति की तरफ से 7 सौ रुपए प्रति माह किराया तक हुआ, लेकिन जब काफी समय बाद भी डेयरी संचालक ने किराया नहीं बढाया और सचिव दिनेश ने डेयरी संचालक टीटू जैन से इस जगह को


खाली करने के लिए कहा। जो नही खाली की, इसके बाद कुछ लोगों के साथ बैठक में मौखिक रुप से किराया नौ हजार रुपए प्रतिमाह तय हो गया। बावजूद इसके डेयरी नहीं हटी, समिति ने जगह खाली कराने के लिए कोर्ट


के वाद दायरकर दिया, जो अभी विचाराधीन है। कब्जे के साथ है गंदगी हिंदी भवन की जमीन पर कब्जा करने के साथ ही इस डेयरी से होने वाली गंदगी से आसपास के लोग परेशान हैं, लोंगों का आरोप हैं कि डेयरी


संचालक ने हिंदी भवन परिसर से पाइप सीधे नाले में डाल रखा है और सबमíसबल चलाकर गोबर आदि इस पाइप के जरिए नाले में बहा दिया जाता है, जिससे नाले में हमेशा बदबू रहती हैं और आसपास के लोगों का जीवन


नारकीय हो गया है। शहर में थी पहचान एक अलग हिंदी भवन की स्थापना 1965 में हुई थी, जबकि इसका भवन पुराना था, करीब 28 सौ वर्ग जमीन पर बने इस हिंदी भवन की समिति की शहर में अलग पहचान थी। लेकिन समय


के साथ हिंदी भवन ढह गया। अब वहां पर खाली मैदान है। अब सिर्फ द्वार पर लगे साइन बोर्ड से ही पता चलता है कि यहां पर कभी हिंदी भवन था। कभी शोधार्थी करते थे पढाई पुरुषोत्तम दास टंडन हिंदी भवन में


नए पुराने हिंदी साहित्य की करीब पांच हजार किताबे मौजूद थी, यहां पर न केवल स्टूडेंट पीएचडी के लिए यहां की बुक्स का सहारा लेते थे। बल्कि हिंदी साहित्यकारों द्वारा यहां बैठकों के साथ यहां पर


हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए काव्य गोष्ठियां होती थी।


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