कर्ज के बाद अब गरीब देशों के सामने नकदी का संकट

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कर्ज के बाद अब गरीब देशों के सामने नकदी का संकट"


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कोविड के बाद का कर्ज संकट अब खत्म हो रहा है, जिसमें घाना, श्रीलंका और जाम्बिया जैसे देशों ने कर्ज संकट से उबरने के लिए समझौते कर लिए हैं. लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और अन्य


वैश्विक संस्थानों को चिंता है कि अब कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं में नकदी की कमी एक गंभीर समस्या बन सकती है. यह कमी विकास को रोक सकती है, जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों को धीमा कर सकती है


और सरकारों व पश्चिमी संस्थानों के प्रति अविश्वास बढ़ा सकती है. यह मुद्दा इस हफ्ते अमेरिका के वॉशिंगटन में हो रही आईएमएफ-वर्ल्ड बैंक की बैठक में चर्चा का प्रमुख विषय है. बैठक में इस बात पर भी


चर्चा हो सकती है कि पश्चिमी देश विदेशी सहायता देने में झिझक रहे हैं. हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया गया था कि 26 सबसे गरीब देशों का कर्ज 18 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. आरबीसी


ब्लूबे के पोर्टफोलियो मैनेजर क्रिस्टियान लिब्रालाटो ने कहा, "कई देशों में कर्ज सेवा महंगी हो गई है, उधार लेना कठिन हो गया है और बाहरी स्रोत अनिश्चित हो गए हैं." अमेरिकी वित्त


मंत्रालय के एक उच्च अधिकारी ने कर्ज संकट से बचने के लिए निम्न और मध्यम आय वाले देशों को अल्पकालिक नकदी सहायता देने के नए तरीकों की वकालत की है. इस ‘ग्लोबल सॉवरिन डेट राउंडटेबल' में


देशों, निजी उधारदाताओं, वर्ल्ड बैंक और जी20 देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं. विशेषज्ञों ने कहा कि गरीब देशों की मदद के लिए मौजूदा संसाधन और उपाय पर्याप्त नहीं हैं. लिक्विडिटी एंड सस्टेनेबिलिटी


फैसिलिटी की अध्यक्ष वेरा सोंगवे ने कहती हैं, "देश अपने कर्ज की किश्तें चुकाने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर खर्च कम कर रहे हैं. यहां तक कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी


तंत्र में दबाव है." पूंजी का सवाल अफ्रीका में निवेश के लिए काम करने वाली संस्था ‘वन कैंपेन' के डेटा के अनुसार, 2022 में 26 देशों ने अपने बाहरी कर्ज की सेवा के लिए जितना उधार लिया


उससे ज्यादा चुकाया. इनमें अंगोला, ब्राजील, नाइजीरिया और पाकिस्तान शामिल हैं, संस्था का अनुमान है कि 2023 में विकासशील देशों के लिए शुद्ध धन प्रवाह नकारात्मक हो गया है और विशेषज्ञ इसके बदतर


होने की आशंका जता रहे हैं. फाइनैंस फॉर डिवेलपमेंट लैब के रिसर्च डाइरेक्टर इशाक दीवान कहते हैं कि अभी पूरे आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन 2023 और 2024 में शुद्ध धन प्रवाह और ज्यादा खराब हो सकता


है. वह कहते हैं, "आईएमएफ के नेतृत्व वाली वैश्विक वित्तीय सुरक्षा व्यवस्था उतनी मजबूत नहीं है. आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और अन्य संस्थानों से मिलने वाली ताजा फंडिंग से बढ़ती कीमतों का खर्च


पूरा नहीं हो रहा है.” आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक के अधिकारी इससे सहमत हैं. वर्ल्ड बैंक ने अपनी उधार क्षमता को 10 वर्षों में 30 अरब डॉलर बढ़ाने की योजना बनाई है. आईएमएफ ने भी कर्जदार देशों के लिए


कर्ज पर खर्च में सालाना 1.2 अरब डॉलर की कमी की है. बदलाव की शुरुआत? बैंकरों का मानना है कि कई देश फिर से बाजारों तक पहुंच बना रहे हैं. जेपी मॉर्गन के स्टीफन वीलर ने कहा, "मुझे नहीं लगता


कि बाजारों तक पहुंच की कोई समस्या है. मार्केट पूरा खुला हुआ है." चीन के कर्जे से यूरोप में हाई स्पीड रेल लिंक To view this video please enable JavaScript, and consider upgrading to a


web browser that supports HTML5 video हालांकि, कर्ज की लागत अभी भी ज्यादा है. केन्या ने 10 फीसदी से ज्यादा की ब्याज दर पर कर्ज लिया है, जिसे अस्थिर माना जाता है. चीन द्वारा कर्ज देने में


कटौती से भी उभरते देशों को बड़ा झटका लगा है. पिछले साल एक रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन के अधिकतर कर्ज वापस नहीं आ रहे हैं. विकास बैंक अपने उधार को बढ़ाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं.


इंटर-अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक और अफ्रीका डेवलपमेंट बैंक ने देशों से आईएमएफ के रिजर्व संसाधन दान करने की अपील की है उनका कहना है कि इससे हर एक डॉलर के दान से आठ डॉलर कर्ज के लिए उपलब्ध होंगे.


हालांकि, वर्ल्ड बैंक और अन्य संस्थाएं पश्चिमी देशों को और अधिक पैसा देने के लिए मनाने की कोशिश कर रही हैं, जबकि कई देश अपने विदेशी सहायता में कटौती कर रहे हैं. वीके/सीके (रॉयटर्स)


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